A Motivational story / बेशक़ीमती पत्थर

बेशक़ीमती पत्थर

एक युवक को लिखने का बड़ा शौक था, लेकिन उसके इन गुणों का कोई मूल्य नहीं समझता था। घरवाले से लेकर दोस्त सभी उसे ताना मारते रहते कि तुम किसी काम के नहीं, बस कागज काले करते रहते हो। यह सब सुन सुन कर उसके अंदर सबके प्रति हीन-भावना घर कर गयी। एक दिन वह अपने एक जौहरी मित्र के पास गया और अपनी व्यथा बतायी। जौहरी ने उसे एक पत्थर दिया और कहा कि मित्र मेरा एक काम कर दो। यह एक कीमती पत्थर है जिसका कीमत का पता लगाने में मेरी मदद करो। कई तरह के लोगो से इसकी कीमत का पता लगाओ, बस इसे बेचना मत। युवक की कीमत का पता लगाने चल दिया रास्ते में उसे पहले एक कबाड़ी मिला उसने उससे पूछा कि इस पत्थर की कीमत क्या है। कबाड़ी वाला बोला कितना होगा मुश्किल से पॉँच रुपये होगा इसे ज्यादा थोड़े न होगा।

हमें ज़रूरत है अपने अंदर की शक्ति जानने की
इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता की लोग क्या कहते हैं

फिर वह आगे बढ़ा उसे सब्जीवाला मिला। उसने कहा तुझे एक किलो प्याज देता हूँ, यह पत्थर दे दो , यह मेरे बाट में काम आ जाएगा। फिर उसकी मुलाकात एक युवक मूर्तिकार से हुई। मूर्तिकार ने कहा की इस पत्थर से मै मूर्ति बना सकता हूँ , तुम यह मुझे एक हजार में दे दो। फिर वह युवक वह पत्थर लेकर रत्नों के विशेषज्ञ के पास गया। उसने पत्थर को परखकर कहा यह पत्थर बेशकीमती हीरा है जिसे तराशा नहीं गया। करोड़ो रुपये भी इसके लिए कम होंगे। युवक जब तक अपने जौहरी मित्र के पास आया , उसे यह समझ आ चुका की हर किसी के अंदर एक बहुमूल्य हीरा है जिसे बस पहचानने की ज़रूरत है। उस युवक के मन से अब कोई हीन भावना नहीं रह गई थी और उसे एक सन्देश मिल चुका था।

मोरल : हमारा जीवन भी उस बेशक़ीमती पत्थर की तरह है , बस उसे विशेषज्ञता के साथ परखकर उचित जगह पर उपयोग करने की आवश्यकता है।

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